Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'}} {{KKPageNavigation |पीछे=मुरली तेरा मु…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ४३
|आगे=
|सारणी=मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
}}
[[Category: लम्बी रचना]]
<poem>
तुम गुरु स्वयं शिष्य मन तेरा प्रथम सुधारो मन मधुकर
जग सुधार कामना मत्त मत जग में करो गमन निर्झर ।
करता विरत कृष्ण-चिन्तन से जगत राग द्वेषादि ग्रसित
टेर रहा है मनसंयमिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२१॥

स्वयं कृपालु बनो मन पर दो उसे प्रबोधन स्वर मधुकर
प्यारे अब बनना न किसी का प्रियतम प्रिया तनय निर्झर।
अपनी पूरी शक्ति लगा दो बना उसे हरि चरण भ्रमर
टेर रहा है मनस्तोषिणी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२२॥

समय न गंवा व्यर्थ चिन्तन में अन्तस्तल में जग मधुकर
मुट्ठी में बाँधता लहर की झाग अज्ञ फेनिल निर्झर ।
सागर की गहराई में हीरे हैं रहा टटोल कहाँ
टेर रहा अस्तित्वबोधिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२३॥

तुम्हें अनंत कर दिया उसने ऐसा सुखदाता मधुकर
पुनः पुनः कर रिक्त पुनः नव जीवन भर जाता निर्झर ।
तेरी लघु वंशी से घाटी-घाटी गाता गीत नवल
टेर रहा अनवरत सहचरी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२४॥

आती भेंट उतर अनंत की तेरे लघुकर में मधुकर
अमृत स्पर्श उसके हाथों का रचता हर्श सिन्धु निर्झर ।
युग बीतते उड़ेल रहा भरने को फिर भी शेष सदन
टेर रहा अक्षयसुखकोषा मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२५॥
</poem>
916
edits