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'सौदा' गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न1 सुख़न के बीचजूँ-ग़ुँचा2 ग़ुँचा सौ ज़बान है उसके दहन3 दहन के बीच
पानी हो बह गये मिरे आज़ा4 आज़ा नयन की राहबाक़ी है जूँ-हुबाब5 नफ़स6 पैरहन7 हुबाब नफ़स पैरहन के बीच
जिनने न देखी हो शफ़क़े-सुब्ह8 सुब्ह की बहार
आकर तेरे शहीद को देखे कफ़न के बीच
वो ख़ारे-सुर्ख़-रू9 रू नहीं अहले-जुनूँ के पासपाबोस को10 को मिरी जो न पहुँचा हो बन के बीच
आतिशकदे में देख कि शोला है बेक़रार
आराम दिलजलों को नहीं है वतन के बीच
बाद-अज़-शबाब11 शबाब हों तिरी अँखियाँ ज़ियादा मस्तहोता है ज़ोरे-कैफ़12 कैफ़ शराबे-कुहन के बीच13बीच
'सौदा' मैं अपने यार से चाहा कि कुछ कहूँ
'''शब्दार्थ:
1. सुख़न = बातचीत 2. ;जूँ-ग़ुँचा = कली की तरह 3. ;दहन = मुँह 4. ;आज़ा = अंग 5. ;जूँ-हुबाब = बुलबुले की तरह 6. ;नफ़स = साँस 7. ;पैरहन = वस्त्र 8. ;शफ़क़े-सुब्ह = उषा 9. ;ख़ारे-सुर्ख़-रू = लाल हो चुका काँटा 10. ; पाबोस = पाँव चूमने के लिए 11. ;बाद-अज़-शबाब = जवानी आने के बाद 12. ;ज़ोरे-कैफ़ = मस्ती का ज़ोर 13. ;शराबे-कुहन = पुरानी शराब
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