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{{KKGlobal}}==समयातीत पूर्ण ४{{KKRachna =|रचनाकार=कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita}}<poem>पाँच गुना असहाय और अकेली स्त्री
पाँच गुना अपेक्छाओं और लज्जा से दबी
का पंचम आर्तनाद
संरखछक हो ?
हे परित्राता
</poem>