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02:36, 22 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKFilmSongCategories
|वर्ग=अन्य गीत
}}
{{KKFilmRachna
|रचनाकार = मजरूह सुल्तानपुरी
, '''गायक:लता मँगेशकर
}}
<poem>मिला दिल, मिल के टूटा जा रहा है
नसीबा बन के फूटा जा रहा है..
दवा-ए-दर्द-ए-दिल मिलनी थी जिससे
वही अब हम से रूठा जा रहा है
अंधेरा हर तरफ़, तूफ़ान भारी
और उनका हाथ छूटा जा रहा है
दुहाई अहल-ए-मंज़िल की, दुहाई
मुसाफ़िर कोई लुटा जा रहा है
</poem>