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|रचनाकार= जावेद अख़्तर
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[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}} हम तो बचपन में भी अकेले थे <br>
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे <br><br>
 
एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के <br>
एक तरफ़ आँसूओं के रेले थे <br><br>
 
थीं सजी हसरतें दूकानों पर <br>
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे <br><br>
 
आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं <br>
उन दिनों फ़ाके भी हमने झेले थे <br><br>
 
ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती <br>
मौत के अपने भी सौ झमेले थे <br><br>