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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>ग़म का वो ज़ोर अब मेरे और अँदर नहीं रहा|इस उम्र में मैं इतना समर्वर नहीं रहा|
इस घर में जो कशिश थी गई उन दिनों के साथ,इस घर का साया अब मेरे सर पर नहीं रहा|
वो हुस्न-ए-नौबहार अबद शौक़ जिस्म सुन,रहना था उस को साथ मेरे पर नहीं रहा|
मुझ में ही कुछ कमी थी कि बेहतर मैं उन से था,मैं शहर में किसी के बराबर नहीं रहा|
रहबर को उन के हाल की हो किस तरह ख़बर,लोगों के दरमियाँ दरमियां वो आकर नहीं रहा|
वापस न जा वहाँ कि तेरे शहर में 'मुनिर',जो जिस जगह पे था वो वहाँ पर नहीं रहा|
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