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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>घर हमारा, जो न रोते भी, तो वीराँ होता वीरां<brref>बरबाद</ref> होता बह्र <ref>समुद्र</ref> गर बह्र न होता तो बयाबाँ होता बयाबां<brref>उज़ाड़,रेगिस्तान<br/ref>होता
तंगी-ए-दिल का गिला क्या, ये वो काफ़िर दिल है <br>कि अगर तंग न होता, तो परेशाँ परेशां होता <br><br>
बादे-यक उम्र-ए-वरा, वराअ<ref>उम्र भर के संयम का बाद</ref> बार <ref>प्रवेश-आज्ञा</ref> तो देता बारे <brref>ज़रूर</ref>काश रिज़वाँ , रिज़्वां<ref>स्वर्ग का दरबान</ref> ही दर-ए-यार का दरबाँ दरबां होता  न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होताडुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता! हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस<brref>हैरान<br/ref>तो ग़म क्या सर के कटने का ?न होता गर जुदा तन से तो ज़ानूं<ref>घुटनों</ref> पर धरा होता हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता हैवो हर इक बात पर कहना, कि यों होता तो क्या होता? </poem>{{KKMeaning}}
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