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'''गीतकार : {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शैलेन्द्र}}[[Category:गीत]]<poem>कहाँ जा रहा है तू ऐ जाने वालेअँधेरा है मन का दिया तो जला लेकहाँ जा रहा है ...
ये जीवन सफ़र एक अंधा सफ़र है
बहकना है मुमकिन भटकने का डर है
सम्भलता नहीं दिल किसी के सम्भाले
कहाँ जा रहा है ...
अब जो ठोकर न खाए नहीं जीत उसकीजो गिर के बरस भेज भैया को बाबुलसम्भल जाए है जीत उसकीनिशां मंज़िलों के ये पैरों के छालेकहाँ जा रहा है ...
सावन में लीजो बुलाय रे लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ देजो संदेशा भिजाये रे  अब के बरस भेज भैय्या को बाबुल ...कभी ये भी सोचा कि मंज़िल कहाँ हैअम्बुवा तले फिर बड़े से झूले पड़ेंगे रिमझिम पड़ेंगी फुहारें लौटेंगी फिर तेरे आंगन जहां में तेरा घर कहाँ हैजो बाँधे थे बंधन वो क्यों तोड़ डालेबाबुल सावन की ठंडी बहारें छलके नयन मोरा कसके रे जियरा बचपन की जब याद आए रे  अब के बरस भेज भैय्या को बाबुल कहाँ जा रहा है ...  बैरन जवानी ने छीने खिलौने और मेरी गुड़िया चुराई बाबुल थी मैं तेरे नाज़ों की पाली फिर क्यों हुई मैं पराई बीते रे जग कोई चिठिया न पाती न कोई नैहर से आये,रे  अब के बरस भेज भैय्या को बाबुल ...-</poem>
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