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{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
[[Category:पद]]
<poem>
कर बिनु कैसे गाय दुहिहैं हमारी वह,
::पद-बिनु कैसे नाचि थिरकि रिझाइहै ।
कहै रतनाकर बदन-बिनु कैसें चाखि,
::माखन बजाइ बैनु गोधन गवाइहै ॥
देखि सुनि कैसें दृग-स्रवन बिनाही हाय,
::भोरे ब्रजवासिनि की बिपति बराइहै ।
रावरौ अनूप कोई अलख अरूप ब्रह्म,
::ऊधौ कहो कौन धौ हमारे काज आइहै ॥46॥
</poem>
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