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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हमने ठानी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है आतिश-ए-दोज़ख़<brref>नरक की आग</ref>अपने जी में हमने ठानी और हैये गर्मी कहाँ सोज़-ए-ग़म-हाए-निहानी<brref>आंतरिक संताप की जलन<br/ref> और है
आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ <br>बारहा देखीं हैं उनकी रंजिशें सोज़पर कुछ अब के सर-ए-ग़म है निहानी और है गिराऩी<brref>रोष<br/ref>और है
बारहा देखीं हैं उनकी रंजिशें <br>देके ख़त मुँह देखता है नामाबर पर कुछ अब के सरगिरानी तो पैग़ाम-ए-ज़बानी और है<br><br>
देके ख़त मुँह देखता है नामाबर क़ातर-अ़अ़मार<brref>जान लेनेवाले</ref> हैं अक्सर नुजूम<ref>सितारे</ref>कुछ तो पैग़ामवो बला-ए-ज़बानी आसमानी और है <br><br>
क़ाता-ए-अमार है अक्सर नुजूम <br>वो बला-ए-आसमानी और है <br><br> हो चुकीं "ग़ालिब" बलायें बलाएं सब तमाम <br>एक मर्ग-ए-नागहानी और है <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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