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एक दिन गर न हुआ बज़्म में साक़ी न सही
एक हंगामे पे मौकूफ़ है घर की रौनक
न सिताइश सताइश<ref>प्रशंसा</ref> की तमन्ना न सिले की परवाह गर नहीं है मेरे अश'आर में माने माअ़नी न सही
इशरत-ए-सोहबत-ए-ख़ुबाँ ख़ुबां<ref>सुंदर प्रेयसियों की संगीत का आनन्द</ref> ही ग़नीमत समझो न हुई , "ग़ालिब" अगर उम्र-ए-तबीई तबोई<ref>नैसगिंक आयु</ref> न सही</poem>
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