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न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही / ग़ालिब

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न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही
इम्तिहां और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही

ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है
शौक़ गुलचीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही

मय-परस्तां ख़ुम-ए-म मुँह से लगाये ही बने
एक दिन गर न हुआ बज़्म में साक़ी न सही

नफ़स-ए-क़ैस कि है चश्म-ओ-चिराग़-ए-सहरा
गर नहीं शम्मा-ए-सियहख़ाना-ए-लैली, न सही

एक हंगामे पे मौकूफ़ है घर की रौनक
नौह-ए-ग़म<ref>दुःखों का विलाप</ref> ही सही नग़्मा-ए-शादी<ref></ref> न सही

न सताइश<ref>प्रशंसा</ref> की तमन्ना न सिले की परवाह
गर नहीं है मेरे अश'आर में माअ़नी न सही

इशरत-ए-सोहबत-ए-ख़ुबां<ref>सुंदर प्रेयसियों की संगीत का आनन्द</ref> ही ग़नीमत समझो
न हुई, "ग़ालिब" अगर उम्र-ए-तबोई<ref>नैसगिंक आयु</ref> न सही

शब्दार्थ
<references/>