भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
85 bytes added,
16:28, 5 मार्च 2010
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ
महरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्तज़ोफ़<brref>दुर्बलता</ref> में ताना-ए-अग़यार<ref>शत्रुओं का व्यंग्य</ref> का शिकवा क्या हैमैं गया वक़्त बात कुछ सर तो नहीं हूँ के फिर आ है कि उठा भी न सकूँ<br><br>
ज़ौफ़ में ताना-ए-अग़यार का शिकवा क्या है<br>बात कुछ सर तो नहीं है के उठा भी न सकूँ <br><br> ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना<br>क्या क़सम है तेरे मिलने की के कि खा भी न सकूँ <br><br/poem>{{KKMeaning}}