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मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त / ग़ालिब
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मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ
ज़ोफ़<ref>दुर्बलता</ref> में ताना-ए-अग़यार<ref>शत्रुओं का व्यंग्य</ref> का शिकवा क्या है
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या क़सम है तेरे मिलने की कि खा भी न सकूँ
शब्दार्थ
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