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अक़ायद वहम है मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़हन-ए-इन्सां बस्त-ए-औहाम है साक़ी
अक़ायद वहम है मज़हब ख़यालहक़ीक़त-एआशनाई अस्ल में गुम-ख़ाम कदर्ह-राही है साक़ी<br>अज़ल से ज़हनउरूस-ए-इन्सां बस्तआगही परवरदह-ए-औहाम अबहाम है साक़ी<br><br>
हक़ीक़त-आशनाई अस्ल में गुम-कदर्ह-राही है<br>मुबारक हो जाईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ादानीउरूसजवानी बेनियाज़-ए-आगही परवरदहइब्रत-ए-अबहाम अन्जाम है साक़ी<br><br>
मुबारक हो जाईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ादानी<br>जवानी बेनियाज़अभी तक रास्ते के पेच-एओ-इब्रतख़म से दिल धड़कता हैमेरा ज़ौक़-ए-अन्जाम तलब शायद अभी तक ख़ाम है साक़ी<br><br>
अभी तक रास्ते के पेच-ओ-ख़म से दिल धड़कता है<br>मेरा ज़ौक़-ए-तलब शायद अभी तक ख़ाम है साक़ी<br><br> वहाँ भेजा गया हूँ चाक करने पर्दे-ए-शब को<br>
जहाँ हर सुबह के दामन पे अक्स-ए-शाम है साक़ी
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