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अक़ायद वहम है मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी / साहिर लुधियानवी
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अक़ायद वहम है मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़हन-ए-इन्सां बस्त-ए-औहाम है साक़ी
हक़ीक़त-आशनाई अस्ल में गुम-कदर्ह-राही है
उरूस-ए-आगही परवरदह-ए-अबहाम है साक़ी
मुबारक हो जाईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ादानी
जवानी बेनियाज़-ए-इब्रत-ए-अन्जाम है साक़ी
अभी तक रास्ते के पेच-ओ-ख़म से दिल धड़कता है
मेरा ज़ौक़-ए-तलब शायद अभी तक ख़ाम है साक़ी
वहाँ भेजा गया हूँ चाक करने पर्दे-ए-शब को
जहाँ हर सुबह के दामन पे अक्स-ए-शाम है साक़ी