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{{KKCatGhazal}}<poem>
अब आए या न आए इधर पूछते चलो
 
क्या चाहती है उनकी नज़र पूछते चलो
 ::हम से अगर है तर्क-ए-ताल्लुक़ तो क्या हुआ ::यारो ! कोई तो उनकी ख़बर पूछते चलो 
जो ख़ुद को कह रहे हैं कि मंज़िल शनास हैं
 
उनको भी क्या ख़बर है मगर पूछते चलो
 ::किस मंज़िल-ए-मुराद की जानिब रवाँ हैं हम ::ऎ रहरवान-ए-ख़ाक बसर पूछते चलो</poem>
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