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{{KKCatGhazal}}<poem>
अब आए या न आए इधर पूछते चलो
क्या चाहती है उनकी नज़र पूछते चलो
जो ख़ुद को कह रहे हैं कि मंज़िल शनास हैं
उनको भी क्या ख़बर है मगर पूछते चलो