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पड़ती है आँख तेरे शहीदों पे हूर की
वा`इज़<ref>बुद्धिजीवीउपदेशक</ref> न तुम पियो न किसी को पिला सको
क्या बात है तुम्हारी शराब-ए-तहूर<ref>स्वर्ग की शराब</ref> की
लड़ता है मुझ से हशर हश्र में क़ातिल कि क्यूं उठा
गोया अभी सुनी नहीं आवाज़ सूर<ref>वो साज़ जो कयामत के दिन बजेगा जिसे सुनकर मुर्दे कब्रों में से उठ खड़े होंगे</ref> की
'ग़ालिब' गर उस सफ़र में मुझे साथ ले चलें
हज का सवाब <ref>पुण्य</ref> नज़्र<ref>भेंट</ref> करूंगा हुज़ूर की
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