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11:16, 9 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
}}
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<Poem>
नीरव रात्रि में
एक तारा कांपता है
कितनी दूर पृथ्वी से
झिलमिल एक रोशनी
झील पर
ठहरी है
बादल उड़ रहे हैं आसमान में
इस सारे दृश्य के बीच
तुम्हारा होना
अब भी है कहीं
इसी धरती पर
तुम हो कहीं
ठीक वैसे
जैसे सुदूर वह तारा
जो मेरा नहीं, मेरे लिए नहीं
पर जो है
इस सारे दृश्य के बीच
इसी धरती पर
</poem>