भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस सारे दृश्य के बीच / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
नीरव रात्रि में
एक तारा कांपता है
कितनी दूर पृथ्वी से
झिलमिल एक रोशनी
झील पर
ठहरी है
बादल उड़ रहे हैं आसमान में
इस सारे दृश्य के बीच
तुम्हारा होना
अब भी है कहीं
इसी धरती पर
तुम हो कहीं
ठीक वैसे
जैसे सुदूर वह तारा
जो मेरा नहीं, मेरे लिए नहीं
पर जो है
इस सारे दृश्य के बीच
इसी धरती पर