1,000 bytes added,
10:31, 11 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
कठिन करेजौ जो न करक्यौ बियोग होत
तापर तिहारौ जंत्र मंत्र खंचिहै नहीं ।
कहै रतनाकर जरी हैं बिरहानल मैं
ब्रह्म की हमारैं जिय जोति जंचिहै नहीं॥
ऊधौ ज्ञान-भान की प्रभानि ब्रजचन्द बिना
चहकि चकोर चित चोपि नचिहै नहीं ।
स्याम-रंग-रांचे साँचे हिय हम ग्वारिनि कै
जोग की भगौंहीं भेष-रेख रंचिहै नहीं ॥55॥
</poem>