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Kavita Kosh से
कितने-कितने तरह से ढलती हो तुम
कहानी में।
जितनी हो दूर हमसे
पास भी हो उतनी ही
फ़ासले हैं तो कैसे हैं ये
अपनी दरमियानी में।
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