994 bytes added,
12:34, 26 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
ढोंग जात्यौ ढरकि परकि उर सोग जात्यौ
::जोग जात्यौ सरकि स-कंप कँखियानि तैं ।
कहै रतनाकर न लेखते प्रपञ्च ऐंठि
::बैठि धरा न लेखते कहूँधौं नखियानि तैं ॥
रहते अदेख नाहिं वेष वह देखत हूँ
::देखत हमारी जान मोर पँखियानि तैं ।
ऊधौ ब्रह्म-ज्ञान कौ बखान करते न नैंकु
::देख लेते कान्ह जौ हमारी अँखियानि तैं ॥65॥
</poem>