1,118 bytes added,
15:35, 26 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=डी० एच० लारेंस
|संग्रह=आत्मा की आँखें / डी० एच० लारेंस
}}
[[Category:अंग्रेज़ी भाषा]]
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरे पाँव के पास चाँदनी बिछाओ भगवान !
दूज के चाँद पर मुझे खड़ा करो
किसी महाराजा के समान ।
टखने डूबे हों चाँदनी में,
मेरे मोजे मुलायम,चमकदार हों ;
और मेरे मस्तक पर
चाँदनी की झरती फुहार हो ।
शीतलता पर इतराऊँ, चमक पर मचलूँ
चाँदनी में तैरता हुआ मंजिल की ओर चलूँ ।
क्योंकि सूरज काल हो गया है ।
उसका चेहर शेर के समान लाल हो गया है ।
</poem>