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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
आए हौ पठाए वा छतीसे छलिया के इतै
::बीस बिसै ऊधौ वीरवामन कलाँच ह्वै ।
कहै रतनाकर प्रपञ्च न पसारौ गाढ़ै
::बाढ़ै पै रहौगे साढ़े बाइस ही जाँच ह्वै ॥
प्रेम अरु जोग मैं है जोग छठैं-आठैं परयौ
::एक ह्वै रहैं क्यों दोऊ हीरा अरु काँच ह्वै ।
तीन गुन पाँच तत्व बहकि बतावत सो
::जैहै तीन-तेरह तिहारी तीन-पाँच ह्वै ॥78॥
</poem>
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