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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
रहति सदाई हरियाई हिय-घायनि में
::ऊरध उसास सौ झकोर पुरवा की है ।
पीव-पीव गोपी पीर-पूरित पुकारति है
::सोई रतनाकर पुकार पपिहा की है ॥
लागी रहै नैननि सौं नीर की झरी औ
::उठै चित मैं चमक सो चमक चपला की है ।
बिनु घनश्याम धाम-धाम ब्रज-मंडल में
::उधौ नित बसंति बहार बरसा की है ॥89॥
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