988 bytes added,
01:57, 15 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
दाबि-दाबि छाती पाती-लिखन लगायौं सबै
::ब्यौंत लिखिबै को पैं न कोऊ करि जात है ।
कहै रतनाकर फुरति नाहिं बात कछु
::हाथ धरयौ हीतल थहरि थरि जात है ॥
ऊधौ के निहोरैं फेरि नैंकु धीर जोरैं पर
::ऐसे अंत ताप कौ प्रताप भरि जात है ।
सूखि जाति स्याही लेखिनी कै नैंकु डंक लागै
::अंक लागैं कागर बररि बरि जात है ॥99॥
</poem>