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{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
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<poem>
भूले जोग-छेम प्रेमनेमहिं निहारि ऊधौ
::सँकुचि समाने उर-अंतर हरास लौं ।
कहै रतनाकर प्रभाव सब ऊने भए
::सूने भए नैन बैन अरथ-उदास लौं ॥
माँगी बिदा माँगत ज्यौं मीच उर भीचि कोऊ
::कीन्यौं मौन गौन निज हिय के हुलास लौं ।
बिथकित साँस-लौं चलत रुकि जात फेरि
::आँस लौं गिरत पुनि उठत उसास लौं ॥103॥
</poem>
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
भूले जोग-छेम प्रेमनेमहिं निहारि ऊधौ
::सँकुचि समाने उर-अंतर हरास लौं ।
कहै रतनाकर प्रभाव सब ऊने भए
::सूने भए नैन बैन अरथ-उदास लौं ॥
माँगी बिदा माँगत ज्यौं मीच उर भीचि कोऊ
::कीन्यौं मौन गौन निज हिय के हुलास लौं ।
बिथकित साँस-लौं चलत रुकि जात फेरि
::आँस लौं गिरत पुनि उठत उसास लौं ॥103॥
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