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भूले जोग-छेम प्रेमनेमहिं निहारि ऊधौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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भूले जोग-छेम प्रेमनेमहिं निहारि ऊधौ
सँकुचि समाने उर-अंतर हरास लौं ।
कहै रतनाकर प्रभाव सब ऊने भए
सूने भए नैन बैन अरथ-उदास लौं ॥
माँगी बिदा माँगत ज्यौं मीच उर भीचि कोऊ
कीन्यौं मौन गौन निज हिय के हुलास लौं ।
बिथकित साँस-लौं चलत रुकि जात फेरि
आँस लौं गिरत पुनि उठत उसास लौं ॥103॥