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11:27, 27 अप्रैल 2010 प्रेम की जगह अनिश्चित है<br />
यहॉं कोई नहीं होगा की जगह भी नहीं है.<br />
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आड़ की ओट में होता है<br />
कि अब कोई नहीं देखेगा<br />
पर सबके हिस्से का एकांत<br />
और सबके हिस्से की ओट निश्चित है.<br />
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वहॉं बहुत दोपहर में भी<br />
थोड़ा-सा अंधेरा है<br />
जैसे बदली छाई हो<br />
बल्कि रात हो रही है<br />
और रात हो गई हो<br />
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बहुत अंधेरे के ज्यादा अंधेरे में<br />
प्रेम के सुख में<br />
पलक मूंद लेने का अंधकार है.<br />
अपने हिस्से की आड़ में<br />
अचानक स्पर्श करते<br />
उपस्थित हुए<br />
और स्पर्श करते, हुए बिदा.<br />
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