भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम की जगह अनिश्चित है / विनोद कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम की जगह अनिश्चित है
यहाँ कोई नहीं होगा की जगह भी नहीं है

आड़ की ओट में होता है
कि अब कोई नहीं देखेगा
पर सबके हिस्‍से का एकांत
और सबके हिस्‍से की ओट निश्चित है

वहाँ बहुत दोपहर में भी
थोड़ा-सा अंधेरा है
जैसे बदली छाई हो
बल्कि रात हो रही है
और रात हो गई हो

बहुत अंधेरे के ज्‍यादा अंधेरे में
प्रेम के सुख में
पलक मूंद लेने का अंधकार है
अपने हिस्‍से की आड़ में
अचानक स्‍पर्श करते
उपस्थित हुए
और स्‍पर्श करते, हुए बिदा