भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
पर क्या बात कि नहीं बजाता
है तो कितना बेतुका आघात
कि मैं संतूर नहीं बजाता.बजाता।
कैसे इतना जीवन गुजर गुज़र गयामुझे खयाल ख़याल तक नहीं आया
कि मैं संतूर नहीं बजाता!
संतूर नहीं बजाता!
कोई संगीतज्ञ नहीं हूं हूँ मगरजानना है मुझे आखिरआख़िर
क्या था वह जो
मेरे और संतूर के बीच अड़ा रहा.रहा।
यह नहीं कि मैं बजाना चाहता हूंहूँजानना चाहता भर हूं आखिर हूँ आख़िर वह
क्या था
मेरे और संतूर के बीच
कि मैं दूर-दूर तक
संतूर नहीं बजाता.बजाता।</poem>