भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं सन्तूर नहीं बजाता / नवीन सागर
Kavita Kosh से
संतूर नहीं बजाता
नहीं बजाता तो नहीं बजाता
पर क्या बात कि नहीं बजाता
है तो कितना बेतुका आघात
कि मैं संतूर नहीं बजाता।
कैसे इतना जीवन गुज़र गया
मुझे ख़याल तक नहीं आया
कि मैं संतूर नहीं बजाता!
और होते-होते हालत आज ये हुई
कि मैं इतनी बड़ी दुनिया में
संतूर नहीं बजाता!
कोई संगीतज्ञ नहीं हूँ मगर
जानना है मुझे आख़िर
क्या था वह जो
मेरे और संतूर के बीच अड़ा रहा।
यह नहीं कि मैं बजाना चाहता हूँ
जानना चाहता भर हूँ आख़िर वह
क्या था
मेरे और संतूर के बीच
कि मैं दूर-दूर तक
संतूर नहीं बजाता।