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रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री / दिनकर कुमार
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14:44, 22 मई 2010
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<Poem>
रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री
रात भर
चांदनी
चाँदनी
का मैलापन
समाया रहता है मेरी आँखों में
सपने में वैशाख
अनिल जनविजय
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