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Kavita Kosh से
हैं झूठ जो कथाएँ सुनीं तलवार और ढाल की
ओ जंगखोरो जंगख़ोरो ! तुम कितना मुनाफा चाहते हो
गया ज़माना कि जादू चला जाए तुम्हारा बयान
लोग डरते हैं पर जानते हैं सारा सच