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जंग किसी के लिए वांछनीय नहीं होती / लाल्टू
Kavita Kosh से
जंग किसी के लिए वांछनीय नहीं होती
जंग में मरते हैं अनगिनत सपने
जंग में मरते हैं हाथी घोड़ा पालकी
जंग छिड़ती है तो आसमान काला हो जाता है
हैं झूठ जो कथाएँ सुनीं तलवार और ढाल की
ओ जंगख़ोरो ! तुम कितना मुनाफ़ा चाहते हो
गया ज़माना कि जादू चला जाए तुम्हारा बयान
लोग डरते हैं पर जानते हैं सारा सच
इसलिए करते हैं विरोध बार-बार
लाचार सुन अंतरात्मा की तड़प
इसलिए ऐ आसमानी चित्त वालो !
बैठ जाओ, मरना तुम्हें भी है एक दिन
मत मरवाओ इतने लोगों को
बढ़ाओ न मुनाफ़ा तुम लाशें गिन-गिन।