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Kavita Kosh से
कौन शाह मदार अपने को कहाए!
क़लम से ही
बचता नहीं है।
कान तेरे नहीं,
मेरी लेखनी का तो इशारा-
उगा-उूबा डूबा है इसी पर
कहीं तुझसे बड़ों,