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{{KKRachna
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<poem>
बजा रहा है बड़े मजे से
आठ बरस का चुम्मकलाल
करमा, भरणी, लहकी, गेंडी
संगत सबके साथ उसी से

काली एक न काली दो
नहीं जानता आगे का सुर
साधे सहज सभी सुरों को
गुँजा रहा है घाटी भर में
पके बाँस की एक बाँसुरी
आठ बरस का चुम्मकलाल
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