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Kavita Kosh से
देखते आकाश बीती आज आधी रात,
व्यर्थ है ओ आय वो आये अब भी याद भूली बात,
सह चुका हूँ बहुत से आघात पर आघात,
अभी कुछ-कुछ रुका-सा था हृदय का रोदन!