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यूँ हौसला दिल ने हारा कब था / परवीन शाकिर
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<poem>
यूँ हौसला दिल ने हारा कब था
सरतान मिरा सितारा कब था
लाजिम था गुज़रना ज़िंदगी से
बिन ज़हर पिए गुज़ारा कब था
कुछ पल उसे और देख सकते
अश्कों को मगर गवारा कब था
हम खुद भी जुदाई का सबब थे
उसका ही कसूर सारा कब था
अब और के साथ है तो क्या दुःख
पहले भी कोई हमारा कब था
</poem>
Shrddha
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