भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यूँ हौसला दिल ने हारा कब था / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
यूँ हौसला दिल ने हारा कब था
सरतान मिरा सितारा कब था
लाजिम था गुज़रना ज़िंदगी से
बिन ज़हर पिए गुज़ारा कब था
कुछ पल उसे और देख सकते
अश्कों को मगर गवारा कब था
हम खुद भी जुदाई का सबब थे
उसका ही कसूर सारा कब था
अब और के साथ है तो क्या दुःख
पहले भी कोई हमारा कब था