भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} उगा हुआ है नया चाँद जैसे उग च…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


उगा हुआ है नया चाँद

जैसे उग चुका है हज़ार बार।

आ-जा रही हैं कारें

साइकिलों की क़तारें;

पटरियों पर दोनों ओर

चले जा रहे हैं बूढ़े

ढोते ज़‍िदगी का भार

जवान, करते हुए प्‍यार

बच्‍चे, करते खिलवार।

उगा हुआ है नया चाँद

जैसे उग चुका है हज़ार बार।

मैं ही क्‍यों इसे देख

एकाएक

गया हूँ रुक

गया हूँ झुक!
195
edits