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{{KKRachna
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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लोग जिसका खा रहे हैं
क्या उसी का गा रहे हैं

चढ़ गयी इन पर भी चर्बी
आइने धुंधला रहे हैं

नेग, बख्शिश, भीख, तोहफे
पाने वाले पा रहे हैं

आप भी गंगा नहायें
खून क्यों खौला रहे हैं

पेट दिखलाना था जिनको
पीठ क्यों दिखला रहे हैं

इन फकीरों से सबक लो
इनमें कुछ राजा रहे हैं

अपने कद को हद में रखना
पेड़ काटे जा रहे हैं </poem>
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