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लोग जिसका खा रहे हैं / सर्वत एम जमाल
Kavita Kosh से
लोग जिसका खा रहे हैं
क्या उसी का गा रहे हैं
चढ़ गयी इन पर भी चर्बी
आइने धुंधला रहे हैं
नेग, बख्शिश, भीख, तोहफे
पाने वाले पा रहे हैं
आप भी गंगा नहायें
खून क्यों खौला रहे हैं
पेट दिखलाना था जिनको
पीठ क्यों दिखला रहे हैं
इन फकीरों से सबक लो
इनमें कुछ राजा रहे हैं
अपने कद को हद में रखना
पेड़ काटे जा रहे हैं