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{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश यती
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इक नई कशमकश से गुज़रते रहे
रोज़ जीते रहे रोज़ मरते रहे
जिंदगी की परेशानियों से “यती”
लोग टूटा किये , हम निखरते रहे </poem>