भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
गली-कूचों में उन्मत्त
नाच रही है जागृति,
चिपक रहे हैं लोग उससे,बटोर रहे हैं --
अक्षुन्ण रतिसुख
उसके पारसी छुअन से,
बेशक! बखूबी जागृति
उनके सनकी परेडों से तब
वे ज्यादा सक्रिय होते हैं जब
इत्र-द्रव्य लेपित प्राणियों पर,
ठठाकर हंसते हैं--
साहित्य-गोष्ठियों पर
अंगरेजीदार जुबान में
इम्पोर्टिड-सी
विचित्र मादाओं से.