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<poem>थिर थार पर
 
थिरकती है तृष्णा
 
दौड़ता है मृग
 
जलता है जल
 
टलता है जल
मरता है मृग
 
फाड़-फाड़ दृग
 
रहती है तृष्णा
 
देखता है थार
 
पूछता है थार;
 
कौन है बड़ा,
 
मृग
 
तृष्णा
 
या फिर मैं
 
जो रहूंगा थिर ।
</poem>
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