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11:28, 5 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
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<poem>
''' मौसम की पेशगी '''
दरवाज़े पर
दस्तक देकर
भिनसारे
आ-टपका मौसम
पेशगियों की भेंट लेकर
आसमान की छत पर
घटाओं की खिड़की से
झांक रही धूप-रमणी
लहराती चंदहली चुनरी ओढ़े
बात जोहती रही--
नाचती-इतराती
मृदंग बजाती
बूँद-छैलियों की.