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टूटते कांच के बर्तन जैसा
बिखरकर, चुभकर
पैरों को लहूलुहान कर देगी, 
बेशक!
सुबह और शाम का
और इन्द्रधनुषी मौसम की
कुछ परछाइयां ही
शेष रह जाएँगी,
यानी, जाड़ा कंटीले कुहरे से
बिंधा कराह रहा होगा,
तेजाबी बौछारों के आतंक से
(आलू और कुकुरमुत्ते की)
कुछ जीवित बची फसलें
और कहने को इंसान
छतों-टेंटों के नीचे होंगे
वास्तुकोश में
ढूँढते रह जाएंगे हम
किचन और बाथरूम ,
जिनके स्थान पर
होगा एक कम्प्यूटर-कक्ष
एक आक्सीज़न वर्कशाप भी होगा
घर के हर सदस्य के
नियंत्रण कक्ष में --
आक्सीज़न सप्लाई के लिए
जहां से वह अपनों की