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सर्वनाम / मुकेश मानस

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बाप चमार
माँ बीमार
जवान होती बहनें चार

माटी की चोंतरी
कर्ज़े की कोठरी
टपकती हुई ओसरी

भूखे पेट जागना
और हिम्मत हारना
खुद को रोज़ मारना

जातिगत प्रताड़ना
ज़िन्दगी अवमानना
एक दु:सह यातना

किसकी व्यथा है ये
उसका क्या नाम है
उसका कोई नाम नहीं
वह तो सर्वनाम है

जहाँ भी जाओगे
नज़र को दौड़ाओगे
हर सिम्त उसे पाओगे
1991, पुरानी नोटबुक से
<poem>
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